उत्तराखंड: समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यूसीसी पोर्टल लॉन्च किया और इसे अपनाने के लिए अधिसूचना जारी की जा चुकी है। यूसीसी सभी धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों को मानकीकृत करता है, जिसमें विवाह, तलाक, विरासत और लिव-इन रिलेशनशिप शामिल हैं। इस प्रकार साल 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान जनता से किया गया समान नागरिक संहिता लागू करने का वायदा तीन वर्ष के भीतर साकार हो चुका है। इसके अलावा, लव जिहाद, थूक जिहाद और लैंड जिहाद पर रोक लगाने के साथ ही दंगाइयों पर लगाम कसने के लिए भी राज्य सरकार कई कदम उठा चुकी है।

भारत में विविधता का अनूठा मेल है—धर्म, भाषा, संस्कृति, और प्रथाओं की दृष्टि से यह देश बेहद समृद्ध है। ऐसे में, संविधान ने हमें सभी धर्मों और समुदायों को समान अधिकार देने की गारंटी दी है। इसके बावजूद, व्यक्तिगत कानूनों की विविधता समाज में असमानता और भेदभाव का कारण बन सकती है। भारत में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code – UCC) की अवधारणा एक लंबे समय से चली आ रही है, जो यह प्रस्तावित करती है कि सभी नागरिकों के लिए व्यक्तिगत मामले, जैसे विवाह, तलाक, संपत्ति के अधिकार, विरासत आदि पर समान कानून लागू किया जाए।

समान नागरिक संहिता (UCC) की परिभाषा
समान नागरिक संहिता का उद्देश्य सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून का निर्माण करना है, जो धर्म, जाति या वर्ग की परवाह किए बिना सभी पर समान रूप से लागू हो। भारत में विभिन्न धर्मों और समुदायों के लिए अलग-अलग व्यक्तिगत कानून हैं, जैसे हिंदू विवाह अधिनियम, मुस्लिम पर्सनल लॉ, क्रिश्चियन विवाह अधिनियम, आदि। ये अलग-अलग कानून कभी-कभी समाज में असमानता का कारण बन सकते हैं।
UCC का उद्देश्य इन भेदभावपूर्ण कानूनों को समाप्त करना और सभी नागरिकों के लिए एक समान और समान अधिकारों वाला कानून बनाना है। यह संविधान के अनुच्छेद 44 के अंतर्गत ‘राज्य को समान नागरिक संहिता बनाने के लिए प्रयत्नशील’ रहने की बात कही गई है। हालांकि यह विषय संवेदनशील है, और इसके क्रियान्वयन में कई राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक मुद्दे शामिल हैं।
उत्तराखंड में UCC की प्रस्तावना
उत्तराखंड राज्य में विभिन्न धर्मों, जातियों और समुदायों के लोग रहते हैं। राज्य में हिंदू धर्म, मुस्लिम धर्म, सिख धर्म, और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की एक बड़ी संख्या है। ऐसे में, व्यक्तिगत कानूनों की विविधता को लेकर असमानता का एहसास किया जा सकता है।
उत्तराखंड में UCC के फायदे
समान अधिकारों की गारंटी: UCC के लागू होने से हर नागरिक को समान अधिकार मिलेंगे, चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय से संबंधित हो। उदाहरण के तौर पर, यदि कोई महिला किसी धर्म विशेष के पर्सनल लॉ के तहत तलाक नहीं ले सकती, तो UCC के तहत उसे भी समान अधिकार मिलेंगे।

सामाजिक समानता: उत्तराखंड में विभिन्न धर्मों और समुदायों के बीच सामाजिक असमानता हो सकती है। UCC के लागू होने से सभी को समान दर्जा मिलेगा, और कोई भी धर्म, जाति, या समुदाय से संबंधित भेदभाव को समाप्त किया जा सकेगा।
एक राष्ट्र, एक कानून: UCC की मौजूदगी से भारत में एक राष्ट्र, एक कानून की स्थिति बनेगी, जिससे सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता की संभावना बढ़ेगी। यह कानून विभिन्न समुदायों के बीच न्याय की समानता को बढ़ावा देगा।
महिला सशक्तिकरण: UCC का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य महिलाओं को समान अधिकार देना है। विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों के तहत महिलाओं को अक्सर भेदभाव का सामना करना पड़ता है। जैसे, मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक की प्रथा को लेकर महिलाएं लंबे समय से असमानता का सामना करती हैं। UCC महिलाओं को समान अधिकार देने की दिशा में एक सकारात्मक कदम हो सकता है।

संविधानिक सिद्धांतों का पालन: भारत के संविधान में समानता का अधिकार दिया गया है। UCC इसके अनुरूप एक समान कानून बनाकर सामाजिक न्याय सुनिश्चित करेगा और संविधान में उल्लिखित मूल अधिकारों का पालन करेगा।
उत्तराखंड में UCC के लागू होने की चुनौतियाँ
धार्मिक असंवेदनशीलता: उत्तराखंड में विभिन्न धार्मिक समुदायों के लोग रहते हैं। यदि UCC को लागू किया जाता है, तो यह कई धार्मिक समूहों के परंपराओं और प्रथाओं को प्रभावित कर सकता है। इस पर विभिन्न धार्मिक नेताओं और समुदायों का विरोध हो सकता है।
सांस्कृतिक विविधता का सम्मान: उत्तराखंड में सांस्कृतिक विविधता की भरमार है। यहां के लोग अपनी पारंपरिक प्रथाओं और विश्वासों के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं। UCC के लागू होने से इन सांस्कृतिक और पारंपरिक मूल्यों को नुकसान हो सकता है, और इसके खिलाफ विरोध हो सकता है।
राजनीतिक विरोध: UCC के लागू होने से राजनीतिक स्तर पर भी कई चुनौतियां आ सकती हैं। विभिन्न राजनीतिक दल और समाज के विभिन्न हिस्से इसके खिलाफ हो सकते हैं, क्योंकि यह एक संवेदनशील विषय है। उत्तराखंड में विशेष रूप से धार्मिक और जातीय राजनीति का प्रभाव होता है, जिससे इस कानून के खिलाफ राजनीतिक विरोध पैदा हो सकता है।
कानूनी मुद्दे और विवाद: UCC के लागू होने से विभिन्न समुदायों के बीच कानूनी विवाद उत्पन्न हो सकते हैं। जो लोग अपनी धार्मिक परंपराओं के अनुसार व्यक्तिगत कानूनों को मानते हैं, वे इसे अपनी स्वतंत्रता पर आक्रमण मान सकते हैं। इसके अलावा, मौजूदा कानूनी ढांचे में संशोधन की आवश्यकता होगी, जो एक जटिल प्रक्रिया हो सकती है।
धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन: कई लोग यह मानते हैं कि UCC धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन कर सकता है, क्योंकि यह विभिन्न धर्मों और उनके कानूनों को एक समान स्तर पर लाने की कोशिश करेगा। इससे धार्मिक अल्पसंख्यकों में असुरक्षा का माहौल उत्पन्न हो सकता है।
उत्तराखंड में UCC के लिए संभावनाएं
शासन की मजबूत इच्छा: यदि उत्तराखंड सरकार UCC को लागू करने के लिए इच्छाशक्ति दिखाती है और इस पर व्यापक रूप से विचार करती है, तो यह राज्य में सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा दे सकता है। राज्य में जो लोग इसके समर्थन में हैं, वे इसे एक अवसर मानते हैं।
शिक्षा और जागरूकता: यदि लोगों को इस बारे में पूरी जानकारी दी जाती है और उनके विश्वासों और चिंताओं को समझा जाता है, तो इसके लागू होने की संभावना बढ़ सकती है। इसे सही ढंग से लागू करने के लिए राज्य सरकार को जागरूकता अभियान चलाना चाहिए।
धार्मिक और सांस्कृतिक संतुलन: राज्य में विभिन्न समुदायों की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को सम्मान देते हुए UCC को लागू किया जा सकता है। यदि इसमें संवेदनशीलता से काम किया जाए, तो इसे सफलतापूर्वक लागू किया जा सकता है।
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) का मुद्दा संवेदनशील और जटिल है, लेकिन यह राज्य में सामाजिक समानता, न्याय, और समान अधिकारों को सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। इसके लागू होने से राज्य में सामाजिक समरसता और समृद्धि का माहौल बन सकता है, हालांकि इसे लागू करने से पहले इसके विभिन्न पहलुओं पर गहन विचार और संवाद की आवश्यकता है। UCC को केवल कानूनी दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी समझना होगा, ताकि इसे बिना किसी विवाद और असहमति के लागू किया जा सके।
उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता क्यों लागू की?
उत्तराखंड, जिसे ‘देवभूमि’ के नाम से भी जाना जाता है, अपनी ऐतिहासिक धरोहर, प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। राज्य में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और अन्य समुदायों के लोग रहते हैं, जो अपनी-अपनी धार्मिक परंपराओं और प्रथाओं को मानते हैं। पिछले कुछ वर्षों में, उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code – UCC) को लागू करने का निर्णय लिया। इस फैसले ने राज्य की राजनीति और समाज में एक महत्वपूर्ण चर्चा को जन्म दिया है। सवाल यह है कि उत्तराखंड सरकार ने यह कदम क्यों उठाया? इस लेख में हम उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता के लागू होने के कारणों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
समान नागरिक संहिता (UCC) क्या है?
समान नागरिक संहिता (UCC) का उद्देश्य यह है कि भारत के सभी नागरिकों के लिए व्यक्तिगत मामलों, जैसे विवाह, तलाक, संपत्ति के अधिकार, विरासत आदि पर समान कानून लागू किया जाए। वर्तमान में भारत में विभिन्न धर्मों के लिए अलग-अलग व्यक्तिगत कानून हैं। उदाहरण के लिए, हिन्दू समाज के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम और मुस्लिम समुदाय के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ है। इन विभिन्न कानूनों के कारण कुछ जगहों पर भेदभाव और असमानता का माहौल पैदा होता है। UCC का उद्देश्य इन्हें समाप्त करना और सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करना है।
उत्तराखंड सरकार ने UCC को लागू करने का फैसला क्यों लिया?
सामाजिक समानता और न्याय
उत्तराखंड में विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोग रहते हैं। राज्य में अलग-अलग धार्मिक समुदायों के लिए अलग-अलग व्यक्तिगत कानून हैं, जैसे मुस्लिमों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ और हिंदुओं के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम। इससे एक ही राज्य में विभिन्न समुदायों के बीच असमानता की स्थिति बन सकती है। एक समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने का उद्देश्य सभी समुदायों को समान अधिकार देना है, जिससे कोई भी धर्म या समुदाय भेदभाव का शिकार न हो। UCC के लागू होने से हर नागरिक को समान अधिकार मिलेंगे, चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय से संबंधित हो।
महिलाओं के अधिकारों का संरक्षण
UCC का सबसे बड़ा लाभ महिलाओं को समान अधिकार मिलने से होगा। विभिन्न पर्सनल लॉ के तहत महिलाओं को अक्सर भेदभाव का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक की प्रथा महिलाओं के खिलाफ असमानता का एक प्रमुख उदाहरण रही है। हिन्दू धर्म में भी संपत्ति के अधिकारों में कभी-कभी महिलाओं को वंचित किया जाता है। UCC के लागू होने से इन भेदभावपूर्ण प्रथाओं को समाप्त किया जा सकेगा, और महिलाओं को समान अधिकार मिलेंगे।
एक राष्ट्र, एक कानून का सिद्धांत
भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है, जिसमें विविधता है। विभिन्न धर्मों, जातियों और भाषाओं के लोग यहां रहते हैं। बावजूद इसके, संविधान में सभी नागरिकों को समान अधिकारों का वादा किया गया है। UCC का उद्देश्य ‘एक राष्ट्र, एक कानून’ की परिभाषा को साकार करना है। इससे समाज में समानता और न्याय का माहौल बनेगा और विभिन्न धर्मों के बीच भेदभाव कम होगा। राज्य सरकार ने UCC लागू करके यह संदेश दिया कि वह सभी नागरिकों के लिए समान अधिकारों और न्याय की वकालत करती है।
संविधानिक सिद्धांतों का पालन
भारत का संविधान समानता, स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों पर आधारित है। संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य से यह अपेक्षा की गई है कि वह सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए प्रयास करेगा। उत्तराखंड सरकार ने इस पहल को संविधान के उद्देश्यों के अनुरूप माना और इसे लागू करने का निर्णय लिया। यह कदम संविधान के उद्देश्यों को साकार करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
धार्मिक प्रथाओं में सुधार
उत्तराखंड के विभिन्न समुदायों में कई पुरानी धार्मिक प्रथाएँ और परंपराएँ प्रचलित हैं। इनमें से कुछ प्रथाएँ महिलाओं और बच्चों के अधिकारों के खिलाफ होती हैं। उदाहरण के लिए, कुछ समुदायों में संपत्ति में महिलाओं को अधिकार नहीं दिया जाता, और तलाक के मामले में भी कुछ प्रथाएँ भेदभावपूर्ण हो सकती हैं। UCC लागू करने से इन धार्मिक प्रथाओं में सुधार होगा और एक समान और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना होगी।
सामाजिक समरसता और सामूहिक एकता
उत्तराखंड में विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ रहते हैं, लेकिन उनके व्यक्तिगत कानूनों के कारण समाज में कभी-कभी असमानता और भेदभाव का माहौल बन सकता है। UCC लागू होने से समाज में समानता का माहौल बनेगा, जिससे लोगों के बीच सामूहिक एकता और समरसता बढ़ेगी। इससे राज्य में सामाजिक शांति और स्थिरता बनी रहेगी।
राज्य सरकार का संकल्प और राजनीतिक इरादा
उत्तराखंड सरकार ने यह निर्णय राज्य की सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए लिया। सरकार ने इस फैसले को अपनी राजनीतिक और प्रशासनिक प्राथमिकताओं में शामिल किया। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने इस फैसले को राज्य में सुधारात्मक कदम और संविधानिक उद्देश्य को पूरा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया। सरकार का उद्देश्य सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना और राज्य के सभी नागरिकों को समान अधिकार देना है।
UCC के लागू होने की चुनौतियां
हालांकि उत्तराखंड में UCC के लागू होने से कई सकारात्मक प्रभाव हुए हैं लेकिन इस प्रक्रिया में कुछ चुनौतियां भी सामने आ रही हैं:
धार्मिक असंवेदनशीलता
उत्तराखंड में विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं, और कुछ धर्मों में व्यक्तिगत कानूनों की जड़ें गहरी हैं। ऐसे में, UCC को लागू करने के दौरान धार्मिक समुदायों में असंवेदनशीलता उत्पन्न हो सकती है। खासकर उन धार्मिक समुदायों के लोग जो अपने पारंपरिक कानूनों को मानते हैं, उन्हें यह बदलाव स्वीकार करना कठिन हो सकता है।
सांस्कृतिक विविधता और परंपराओं का सम्मान
उत्तराखंड में हर समुदाय की अपनी सांस्कृतिक पहचान और परंपराएँ हैं। ऐसे में, एक समान नागरिक संहिता लागू करने से इन परंपराओं में हस्तक्षेप हो सकता है। इसे लागू करते वक्त सांस्कृतिक विविधता और परंपराओं का सम्मान करना जरूरी होगा।
उत्तराखंड यूसीसी के प्रावधान
उत्तराखंड में लागू समान नागरिक संहिता अधिनियम, 2024 अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों को छोड़कर राज्य में रहने वाले सभी व्यक्तियों पर लागू होता है। नीचे इसके प्रमुख प्रावधानों का विवरण दिया गया है:
विवाह और तलाक:
न्यूनतम विवाह योग्य आयु : सभी लिंगों के लिए एक समान न्यूनतम विवाह योग्य आयु स्थापित की गई है – महिलाओं के लिए 18 वर्ष और पुरुषों के लिए 21 वर्ष – मौजूदा राष्ट्रीय कानून के अनुरूप।
विवाह का पंजीकरण : कानूनी मान्यता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए नामित प्राधिकारियों के पास सभी विवाहों का अनिवार्य पंजीकरण आवश्यक है।
तलाक के आधार : सभी समुदायों पर लागू तलाक के लिए एक समान आधार निर्दिष्ट करता है, तथा क्रूरता, व्यभिचार, परित्याग और मानसिक बीमारी जैसे मुद्दों पर विचार करता है।
गुजारा भत्ता और भरण-पोषण : इसमें तलाक के बाद जीवनसाथी और बच्चे के भरण-पोषण, वित्तीय सहायता सुनिश्चित करने और आश्रितों के कल्याण को बढ़ावा देने के प्रावधान शामिल हैं।
उत्तराधिकार और विरासत:
समान अधिकार : बेटों और बेटियों को समान उत्तराधिकार अधिकार प्रदान करता है, पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति के बीच के अंतर को समाप्त करता है। यह लैंगिक समानता सुनिश्चित करता है और विरासत में मिली संपत्तियों के उचित वितरण को बढ़ावा देता है।
उत्तराधिकार नियम : मृतक के साथ रिश्ते के आधार पर विरासत के लिए एक समान नियम स्थापित करता है, चाहे वह किसी भी धार्मिक संबद्धता का हो। यह कानूनी प्रक्रियाओं को सरल बनाता है और विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों से उत्पन्न जटिलताओं को हल करता है।
लिव-इन रिलेशनशिप:
पंजीकरण : लिव-इन रिश्तों के पंजीकरण को अनिवार्य बनाता है, उन्हें कानूनी मान्यता प्रदान करता है और ऐसी साझेदारी में व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करता है।
बच्चों के अधिकार : पंजीकृत लिव-इन रिश्तों में भागीदारों से पैदा हुए बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करता है, जिसमें विरासत, रखरखाव और अन्य कानूनी लाभों तक पहुंच शामिल है।
परित्यक्त भागीदारों के लिए भरण-पोषण : इसमें लिव-इन रिलेशनशिप में परित्यक्त भागीदारों के लिए भरण-पोषण, उनकी वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने और संभावित शोषण को संबोधित करने के प्रावधान शामिल हैं।
अतिरिक्त प्रावधान:
बहुविवाह का निषेध : सभी व्यक्तियों के लिए बहुविवाह की प्रथा पर प्रतिबंध लगाता है, एकविवाह और लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है।
बाल विवाह प्रतिबंध : बाल विवाह पर मौजूदा राष्ट्रीय प्रतिबंध को मजबूत करता है, बच्चों को हानिकारक पारंपरिक प्रथाओं से बचाता है।
न्यायालयों का क्षेत्राधिकार : समान नागरिक संहिता के तहत विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और भरण-पोषण से संबंधित मामलों में न्यायालयों के क्षेत्राधिकार को निर्दिष्ट करता है।
छूट:
अनुसूचित जनजातियाँ : अधिनियम अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों को इसके प्रावधानों से छूट देता है, जिससे उन्हें व्यक्तिगत मामलों में अपने प्रथागत कानूनों का पालन जारी रखने की अनुमति मिलती है।
निष्कर्ष
उत्तराखंड सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने का निर्णय राज्य में समानता, सामाजिक न्याय और अधिकारों के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह कदम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने, समाज में समानता बढ़ाने और संविधान के उद्देश्यों को साकार करने के लिए लिया गया है। हालांकि इसके लागू होने में कुछ चुनौतियां हो सकती हैं, लेकिन यह राज्य के नागरिकों को समान अधिकार देने की दिशा में एक मजबूत पहल साबित हो सकती है। UCC का उद्देश्य सिर्फ एक कानून लागू करना नहीं, बल्कि समाज में सामूहिक एकता, शांति और समरसता को बढ़ावा देना है, जिससे उत्तराखंड में एक आदर्श समाज की स्थापना हो सके।