बिहार चुनाव 2025 – राजनीति का नया मोड़, नौकरियों और मतदाता सूची का सवाल
पूर्वोत्तर भारत में स्थित बिहार वह राज्य है जहाँ अब सबकी निगाहें टिकी हैं। अक्टूबर-नवंबर 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव ने सिर्फ राज्य की सत्ता नहीं बदलनी है, बल्कि आने वाले समय में देश की राजनीति-दिशा को भी प्रभावित करने वाले संकेत दे सकते हैं। इस लेख में हम देखेंगे कि किसके लिए ये चुनाव मायने रखता है, वोटरों की सबसे बड़ी चिन्ताएँ क्या हैं, और किस तरह से पार्टियों के बीच मुकाबला बेहद क़रीबी बन चुका है।
प्रमुख विषय-वस्तु
- नौकरियों का दबाव और भ्रष्टाचार की समस्या
- मतदाता सूची-संशोधन और निष्पक्षता पर सवाल
- मुख्य गठबंधनों का संघर्ष और दृष्टिकोण
- क्या राज्य ही तय करेगा राष्ट्रीय राजनीति की दिशा?

नौकरियाँ और भ्रष्टाचार-चुनौतियाँ
जनमत-सर्वेक्षण बताते हैं कि बिहार के मतदाताओं में सबसे बड़ी चिंता बेरोजगारी है — करीब 24 % लोगों ने इसे चुनाव का मुख्य मुद्दा बताया है। वहीं, भ्रष्टाचार 10 % के करीब मतों में प्रमुख स्थान पर है। युवा-वर्ग, विशेषकर 15-29 वर्ष के युवा, नौकरी-विहीनता को अनुभव कर रहे हैं और इसे राजनीतिक विकल्प तय करने में अहम मानते हैं।
राज्य सरकार ने इस चुनाव से थोड़ी पहले कई आर्थिक योजनाएँ शुरू की हैं — जैसे महिलाओं को रोजगार-सहायता, पेंशन वृद्धि और दूसरों को लाभ देना। हालांकि ऐसी घोषणाएं-लौती योजनाएँ मतदाताओं को प्रभावित कर सकती हैं, लेकिन उनका असर चुनाव परिणाम में कैसे दिखेगा यह अभी अनिश्चित है।
मतदाता सूची-संशोधन और निर्वाचन निष्पक्षता
इसे चुनाव के दौरान एक दूसरा अहम मोर्चा कहा जा सकता है: Election Commission of India द्वारा राज्य में मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर बदलाव किए जा रहे हैं — जिसमें लाखों मतदाताओं को हटाया गया और नए जोड़े गए। विपक्षी दलों का आरोप है कि इस प्रक्रिया से कमजोर व कमजोर-वर्ग-मजदूर-माइग्रेंट मतदाता प्रभावित हो सकते हैं। इसलिए चुनाव में निष्पक्षता और लोकतांत्रिक अधिकारों पर सवाल उठ रहे हैं।
मतदाता सूची-संशोधन, निर्वाचन क्षेत्र-विभाजन, और मतदान-प्रक्रिया में बदलाव भी इस बार चर्चा में हैं–इससे सहज मतदान एवं लोकतंत्र की गारंटी का सवाल खड़ा हुआ है।
गठबंधनों की जंग और रणनीति
मुख्य मुकाबला दो बड़े गठबंधनों के बीच है: Bharatiya Janata Party-नेतृत National Democratic Alliance (NDA) और INDIA bloc नामक विपक्षी गठबंधन। सर्वे बताते हैं कि NDA को थोड़ा-बहुत बढ़त मिल रही है — करीब 41.3 % वोट शेयर अनुमानित है, जबकि विपक्ष करीब 39.7 % पर है।
हालाँकि यहाँ एक उलझन है–एनडीए के खिलाफ व्यापक “एंटी-इंकंबेंसी” (वर्तमान सरकार के खिलाफ असंतोष) दिख रही है, फिर भी उसकी बढ़त बनी हुई है। इसके पीछे कई कारण हैं–वोट विभाजन, गठबंधन-मजबूती और स्थानीय समीकरण।
उदाहरण के लिए, रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने अपनी नई पार्टी-“जन सुराज” बनाकर महाराष्ट्र-विरुद्ध नए रूप से मैदान तैयार किया है, जिससे राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं। इस तरह से यह चुनाव सिर्फ दो-गुटों की लड़ाई नहीं, बल्कि नए राजनीतिक तरीकों और टूट-बंध से भी जुड़ा हुआ है।

राज्य का महत्व और राष्ट्रीय प्रभाव
बिहार सिर्फ एक राज्य नहीं–यह राजनीति का एक अहम मोर्चा है। यहाँ जितनी सीटें हैं, उतनी राष्ट्रीय स्तर पर कम-ही मिलती हैं। इसीलिए इस चुनाव का नतीजा सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि देश की अगली लोकसभा-रणनीति, गठबंधन-रूपांतरण और बड़े-छोटे दलों की दिशा तय करेगा।
अगर एनडीए मजबूत होकर आए, तो वर्तमान केंद्र-गठबंधन को बल मिलेगा। वहीं यदि विपक्षी गठबंधन बढ़त बनाए, तो यह संकेत होगा कि राज्यों में बदलाव की प्रक्रिया तेज है। इस तरह से हर वोट-काँटा-कसौटी का महत्व बहुत बढ़ जाता है।
इस चुनाव में अंततः क्या तय करेगा?–
सरकार की जन-नीतियाँ और उनके क्रियान्वयन का प्रभाव।
वास्तविक-जमीनी समस्याएँ-– नौकरी, शिक्षा, स्वास्थ्य, माइग्रेशन।
निष्पक्ष-मतदान-व्यवस्था और मतदाता-विश्वास।
गठबंधन-रणनीति, स्थानीय छवि, चेहरा-लोक-संबंध।
अगर आप-मैं जैसे सामान्य नागरिक ने समझ-बूझ से मतदान किया तो कल का बिहार-कल का भारत हम-हम होंगे-से नहीं रहेगा। यह चुनाव एक मौका है–सिर्फ सत्ता-परिवर्तन का नहीं–बल्कि राज्य की दिशा बदलने का, युवाओं-का भरोसा जीतने का, लोकतंत्र की सच्ची परीक्षा देने का।






