dudharu pashu: दूध उत्पादन हेतु पशुओं का चुनाव करते समय पशुपालकों को निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना होगा — बाह्य आकृति के आधार पर, वंसावली के आधार पर, संतान उत्पादन के आधार पर
बाह्य आकृति के आधार पर : हाट या मेले में जहां पशुओं की जानकारी उपलब्ध नहीं होती, वहां पर दुधारू पशुओं का चुनाव उनकी बाह्य आकृति के अनुसार किया जाता है, इसमें कुछ प्रमुख बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए।
शारीरिक बनावट: दुधारू गाय की पहचान उसकी त्रिभुजाकार शारीरिक बनावट से की जा सकती है ऐसी दुधारू गाय का पिछला भाग आकार में बड़ा और भारी परंतु अग्रिम भाग अपेक्षाकृत पतला और छोटा होता है। दुधारू गाय की त्वचा पतली, ढीली ,चिकनी और मुलायम होती है।dudharu pashu

पांव: पशु के अगले पैर का निचला भाग लगभग खड़ा होता है तथा पिछले पर बगल से देखने पर हासिये के आकार के होते हैं।
छाती: दुधारू पशुओं की छाती चौड़ी पसली अंदर की ओर होनी चाहिए आंखें चौकनी और चमकीली होनी चाहिए ।
अयन एवं थन का आकार – दुधारू गाय का अयन का अगला हिस्सा पुष्ट और वृहद होना उचित माना जाता है पिछले भाग से अयन चौड़ी देखनी चाहिए तथा शरीर से इस तरह जुडा हो ताकि उथला जैसा लगे। अयन को स्पर्श करने पर यह मुलायम प्रतीत होता है, जिसकी दुग्ध शिराएं विशेष रूप से विकसित होती हैं। गाय का थान 5–6 से. मी. लम्बा और 20–25 मि. मी. व्यास का हो, वह गाय अच्छी समझी जाती है। समतल भूमि में खड़ी एक दुधारू गाय के थानों और जमीन के बीच 45–50 से. मी. या अधिक से अधिक 48से. मी. की दूरी आदर्श मानी जाती है झूलते या लपकते हुए अयन अच्छे नहीं माने जाते हैं। क्योंकि जब गाय में भैंस चलने हेतु छोड़ी जाती है तो कांटे या नुकीले पदार्थ से तन को जख्म होने की संभावना रहती है और थनैला रोग की समस्या बढ़ जाती है अयन में थानों की स्थिति समान दूरी पर होना चाहिए। यदि थानों में सूजन या दर्द हो तो ऐसे गायों का चयन नहीं करना चाहिए।dudharu pashu

उम्र के आधार पर: पशु की उम्र उनके स्थायी कृन्तक जोड़ा दांत तथा सिंह पर उभरे ग्रो द्वारा ज्ञात की जा सकती है। गाय बेल की प्रथम स्थायी कृन्तक जोड़ा दांत लगभग दो वर्ष में दिखने लगते हैं। जबकि पूरे कृन्तक जोड़ा दांत 3–1/2 से 4 साल की उम्र में निकल आते हैं…. दांत के अतिरिक्त पशु की सींग पर बबल गैरों से भी उसकी उम्र का अनुमान लगाना संभव है। सींग के गैरों की संख्या में दो और जोड़ देने पर उम्र का पता लगाया जा सकता है।dudharu pashu
वंशावली के आधार पर: आर्थिक पहलू से गए एवं भैंस के गुना को तीन श्रमों में बांटा गया है
1. शारीरिक विकास
2. दूध उत्पादन
3. प्रजनन

दुधारू पशुओं की पहचान नल के आधार पर अधिकांश की जाती है । प्रत्येक नस्ल के शारीरिक विकास उनकी वंशावली के आधार पर होते हैं। पशुओं के जनने के बाद दूध का उत्पादन बहुत कुछ अनुवांशिकता पर निर्भर करता है। माता-पिता से गुण बच्चों में जाते हैं, अतः दुधारू पशु के बच्चे भी अधिक दूध देने की क्षमता रखते हैं। बशर्ते उन्हें अच्छा आहार एवं उत्तम व्यवस्थापना प्राप्त हो। सांड को दुग्ध प्रक्षेत्र का आधा हिस्सा माना जाता है, क्योंकि एक सांड से बहुत से बच्चे पैदा हो सकते हैं। सांड को प्रजनन हेतु लाने के समय ठीक से चयन करना बहुत आवश्यक है जनक और जननी दोनों का ही प्रभाव संतान के लक्षणों पर होता है।dudharu pashu
संतान के उत्पादन के आधार पर: दुधारू पशुओं का चुनाव उनकी संतान के उत्पादन के आधार पर किया जाना अधिक लाभकारी होता है। इन संतान मैं माता-पिता दोनों के गुण सम्मिलित रहते हैं जिन पशुओं की संतान की उत्पादन क्षमता अधिक रहती है उन्हीं के आधार पर चयन किया जाता है । ब्यातो का अंतराल करीबन 15 माह होना चाहिए बयाने के तीन मा पश्चात ही गए का पुनः गर्भधारण कर लेना अच्छा माना जाता है। पशुओं के आहार एवं वातावरण पर पशुधन की उत्पादकता एवं पशुओं की गुणवत्ता निर्भर करती है। परंतु अच्छी गुणवत्ता के पशुओं का उत्पादन, उनमें पाए जाने वाले अनुवांशीय गुणों पर आधारित होता है। पशुपालकों को सुझाव दिया जाता है की दुधारू पशु का चुनाव करते समय उनकी शारीरिक बनावट, नस्ल, उत्पादन क्षमता, उम्र इत्यादि बिंदुओं पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त यह भी देखना चाहिए कि पशु पूर्ण रूप से रोग मुक्त हो ।जहां तक संभव हो गर्भवती गाय भैंसों का ध्यान रखना उचित रहता ह