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khait Parvat: खैट पर्वत जहा वास करती है परियां, जाने क्या है रहस्यमयी पर्वत का राज?

परियों की कहानियां सिर्फ़ बचपन में नहीं, जिंदगी में भी डरावने जादू बिखेरती हैं. ऐसी ही एक जगह है, उत्तराखंड के खैट पर्वत में जहां आंछरियां ( परियां) वास करती है. ऐसी कई मान्यता है. जिस कारण यहां मौजूद खैट पर्वत को परियों का राज्य कहा जाता है. अगर आप यहां जा रहे है तो सावधानी बर्तनी होगी. खैट पर्वत के पास स्थित थात गांव से 5 किलोमीटर दूर खैटखाल का मंदिर स्थित है, जहां परियों की पूजा भी की जाती है.

मान्यता के अनुसार लडकों को हैं रात में खतरा

मान्यताओं के मुताबिक लड़कों का रात के समय खैट पर्वत पर जाना मना हैं. बुजुर्गों का कहना है कि कोई भी आदमी शाम को पर्वत पर जाता है तो कभी लौटकर वापस नहीं आ सकता. स्थानीय निवासी जया ने बताया कि “काफी समय पहले एक लड़का बकरियां चराने खैट पर्वत पर गया और समय से वापस नही लौट पाया और अभी तक उसका कोई पता नहीं चला” .एसी कई लड़कों की गायब होने की कहानियां इस पर्वत पर फेमस है.

परियां करती है गाँव की रक्षा

उत्तराखंड के तिहरी गढ़वाल में यह जगह समुंद्र तल से 10000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. मान्यता है की इन पहाड़ो में रहने वाली परियां गाँव की रक्षा करती हैं. यहाँ कई प्राकृतिक चमत्कार देखें गए हैं. इस इलाके में सालभर फूल खिलते हैं और अगर कोई इन्सान इन फूलों को तोड़कर किसी और जगह ले जाए तब यह मुरझा जाते हैं.

अपने आप होती है लहसुन और अखरोट की खेती

खैट पर्वत में अपने आप लहसुन और अखरोट की खेती होती है. जबकि यहाँ का वातावरण इनकी खेती के अनुकूल नहीं पाया गया है. पर्वत की रहस्यमयी शक्तियों को समझने के लिए अमेरिका की मैसाचुसेट्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने यहां शोध भी किया और पाया कि, यहां कुछ अदृश्य उर्जा का प्रभाव है. जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है.

राजा आशा रावत और आंछरी बनने की कथा

किंवदंती के अनुसार, राजा आशा रावत की रानी देवा ने नौ बेटियों को जन्म दिया. जिनका नाम कमला रौतेली, देवी रौतेली, आशा रौतेली, वासदेइ रौतेली, इगुला रौतेली, बिगुल रौतेली, सदेई रौतेली, गरादुआ रौतेली और वरदेइ रौतेली था. यह सभी बच्चियां बहुत सुंदर थीं. जब वह पानी भरने गईं, तो देखा की गाँव में अँधेरा छाया हुआ है. जबकि खैट पर्वत पर सूर्य की रोशनी फैली हुई थी. उत्सुक होकर जब वह सभी खैट पर्वत पहुंची तो सभी परियां बन गईं.

Story by- Megha Bhardwaj

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