नैनीताल का नाम ‘नैनीताल’ कैसे पड़ा – एक ऐतिहासिक कहानी
उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र में बसा नैनीताल, अपनी सुंदरता और झीलों के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध है। यह शहर न सिर्फ एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है, बल्कि इसके नाम के पीछे एक दिलचस्प और ऐतिहासिक कहानी भी छिपी हुई है।
नैनी झील से जुड़ा नाम
नैनीताल का नाम “नैनी” और “ताल” — इन दो शब्दों से मिलकर बना है। “नैनी” का अर्थ है आंख, और “ताल” का अर्थ है झील। इस तरह “नैनीताल” का अर्थ हुआ ‘आंखों की झील’ या ‘नैनी झील वाला स्थान’। कहा जाता है कि इस शहर का नाम यहां स्थित प्रसिद्ध नैनी झील के नाम पर रखा गया।

पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह झील देवी सती की आंखों से जुड़ी है। कथा के अनुसार, जब भगवान शिव सती के शव को लेकर ब्रह्मांड में घूम रहे थे, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के अंगों को अलग-अलग स्थानों पर गिराया ताकि भगवान शिव का क्रोध शांत हो सके।
कहा जाता है कि सती की आंखें (नयन) इसी स्थान पर गिरी थीं। इस कारण इस स्थान का नाम ‘नैनीताल’ पड़ा और यहां पर नैना देवी मंदिर की स्थापना की गई, जो आज भी श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है।
ब्रिटिश काल का प्रभाव
ब्रिटिश काल में नैनीताल को गर्मियों के मौसम में रहने के लिए एक आदर्श स्थान माना जाता था। 1841 में ब्रिटिश व्यापारी पी. बैरन (P. Barron) ने इस स्थान को खोजा और यहां एक सुंदर शहर बसाया। धीरे-धीरे यह जगह ब्रिटिश लोगों के बीच प्रसिद्ध हो गई और “लेक डिस्ट्रिक्ट ऑफ इंडिया” के नाम से जानी जाने लगी।
धार्मिक और पर्यटन महत्व
आज के समय में नैनीताल न केवल एक धार्मिक स्थल है बल्कि एक खूबसूरत पर्यटन केंद्र भी है। यहां की नैनी झील, नैना देवी मंदिर, स्नो व्यू पॉइंट, टिफिन टॉप और चिड़ियाघर जैसी जगहें हर साल लाखों पर्यटकों को अपनी ओर खींचती हैं।

इस तरह नैनीताल का नाम उसकी नैनी झील और देवी सती की आंखों से जुड़ा हुआ है। यह शहर न केवल प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक है, बल्कि इसमें आस्था, इतिहास और पौराणिकता का अनोखा संगम भी देखने को मिलता है। यही कारण है कि नैनीताल को भारत के सबसे सुंदर और पवित्र स्थलों में गिना जाता है।





