भारतीय सिनेमा: हिंदी सिनेमा की दुनिया में रोमांस, एक्शन और कॉमेडी के साथ-साथ हॉरर फिल्मों की भी एक खास पहचान रही है। डर एक ऐसा भाव है, जो सीधे इंसान की आत्मा को झकझोर देता है। जब परदे पर कोई परछाई चलती है, खिड़की अपने आप खुलती है, या किसी पुराने घर में अजीब सी आवाज़ें आती हैं – तो हमारे भीतर का डर असली रूप लेने लगता है।
पिछले दो दशकों में बॉलीवुड ने कई ऐसी फिल्में दी हैं, जो ना केवल बॉक्स ऑफिस पर सफल रहीं, बल्कि दर्शकों के ज़हन में एक अमिट छाप छोड़ गईं। इस लेख में हम उन चुनिंदा हिंदी हॉरर फिल्मों की चर्चा करेंगे, जो अब तक की सबसे डरावनी मानी जाती हैं।
‘राज़’ (2002)
विक्रम भट्ट द्वारा निर्देशित यह फिल्म हॉरर और रोमांस का जबरदस्त मिश्रण थी। बिपाशा बसु और डिनो मोरिया की यह फिल्म हिमाचल की पहाड़ियों में एक ऐसी प्रेम कहानी को दर्शाती है, जिसके पीछे आत्मा का साया छिपा होता है। इसका म्यूजिक और सस्पेंस दोनों ही दर्शकों को रोंगटे खड़े कर देने वाला अनुभव देते हैं।

‘भूत’ (2003)
राम गोपाल वर्मा की इस फिल्म को आज भी बॉलीवुड की सबसे डरावनी फिल्मों में गिना जाता है। उर्मिला मातोंडकर का दमदार अभिनय और बिना खून-खराबे के डर का माहौल – यह फिल्म इस बात का प्रमाण है कि डर दिखाने के लिए केवल प्रभावशाली अभिनय और मजबूत निर्देशन ही काफी है।

‘1920’ (2008)
एक ब्रिटिश कालीन हवेली, जिसमें नए शादीशुदा जोड़े की ज़िंदगी बदल जाती है। फिल्म की भयानक लोकेशंस और आदाह शर्मा की परफॉर्मेंस इसे विशेष बनाती है। विक्रम भट्ट की यह फिल्म क्लासिक हॉरर टोन लेकर आती है

‘स्त्री’ (2018)
राजकुमार राव और श्रद्धा कपूर अभिनीत यह फिल्म एक सच्ची लोककथा से प्रेरित थी। “ओ स्त्री, कल आना” जैसे डायलॉग ने इसे सोशल मीडिया पर वायरल बना दिया। डर और कॉमेडी का अनोखा तालमेल दर्शकों को हँसाने के साथ डराने में भी सफल रहा।

‘तुम्बाड़’ (2018)
भारतीय लोककथाओं पर आधारित इस फिल्म को न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी सराहना मिली। सोहम शाह द्वारा अभिनीत यह फिल्म एक ऐसे खजाने की तलाश की कहानी है, जहां लालच इंसान को शैतान बना देता है। इसका सिनेमेटिक अनुभव इसे एक अनोखी हॉरर फिल्म बनाता है।

‘13B’ (2009)
आर. माधवन की यह फिल्म एक फ्लैट में रह रहे परिवार की कहानी है, जिनके साथ होने वाली अजीब घटनाएं टीवी पर पहले से दिखाई जाती हैं। यह फिल्म मनोवैज्ञानिक डर का बेहतरीन उदाहरण है।

‘पिज़्ज़ा’ (2014)
एक आम पिज़्ज़ा डिलीवरी बॉय की जिंदगी में एक रात ऐसा मोड़ आता है जो सब कुछ बदल देता है। यह फिल्म टर्निंग पॉइंट्स और अप्रत्याशित अंत के लिए जानी जाती है। इसका ट्विस्ट दर्शकों को हैरान कर देता है।

‘मकड़ी’ (2002)
विशाल भारद्वाज द्वारा निर्देशित ‘मकड़ी’ एक ऐसी फिल्म है जो बच्चों को भी डर के एहसास से रूबरू कराती है। शबाना आज़मी द्वारा निभाई गई चुड़ैल की भूमिका आज भी दर्शकों को याद है। यह फिल्म दिखाती है कि बच्चों के लिए हॉरर फिल्में कैसे बनाई जानी चाहिए।
डर का मनोविज्ञान:
हमारे दिमाग में ‘एमिगडाला’ नामक हिस्सा डर के भाव को नियंत्रित करता है। जब हम कुछ अनजान, असामान्य या अंधेरे में देखी गई हरकतें महसूस करते हैं, तो यह हिस्सा एक्टिव हो जाता है। हॉरर फिल्मों की सबसे बड़ी ताकत यही होती है कि वे हमारी कल्पनाओं को इतना वास्तविक बना देती हैं कि शरीर में सिहरन दौड़ जाती है।

निष्कर्ष:
डरावनी फिल्में केवल डराने के लिए नहीं होतीं, वे हमारी कल्पनाओं को चुनौती देती हैं, समाज के डर को दर्शाती हैं, और कभी-कभी अंधविश्वास व कुरीतियों पर व्यंग्य भी करती हैं। ऊपर दी गई फिल्मों ने न केवल हॉरर को नए आयाम दिए हैं, बल्कि हिंदी सिनेमा में इस शैली को मज़बूत भी किया है।
अगर आपने इनमें से कोई भी फिल्म नहीं देखी है, तो अगली रात की प्लानिंग कर लीजिए – लेकिन याद रहे, अकेले मत देखिएगा।