Poetry : चकाचौंध के इस दौर में आध्यात्म ढकोसला या यों कहें मात्र फौरमल्टि बनकर रह गया है। बड़ा आशचर्य होता है आज बेचैनी के मार्ग में दौड़कर लोग, ऐसो-आराम व सुख-चैन बूँढ रहे हैं। दौलत कमाने की अंधी हौड के पीछे पागलों की तरह भाग रहे हैं। बहुत आगे निकल जाने के चक्कर में अपना वजूद, अपना अस्तित्व अपनी जड़ें सब कुछ भुला चुके हैं। poetry सुख की चाह में क्षण-प्रतिक्षण दुखों को आमंत्रित कर रहे हैं। मैं हूँ इस बात का आभास तो उन्हें है। पर मैं क्यों हूँ, मुझे क्या करना है, मेरा उद्देश्य क्या है इस बात को अभी जानने की आवश्यकता है कुछ समय पहले का अगर इतिहास उठाकर देखें तो विश्व गुरू कहे जाने वाले इस देश को कई शासकों ने कईबार लूटा और सबसे ज्यादा लूट मची गुलामी काल में अंग्रेजों के आधिपत्य में रहे हमारे इस देश में उन्होंने फूट डालो,poetry राज करो की नीति अपनाकर जैसे चाहा वैसे हमारे लोगों को नचाया, जो हाथ पढ़ा उसे लूटने-खसूट ने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। वो धूर्त थे, चालाक थे। दूसरे देश के धन में ऐश कर गये। लेकिन आजादी की लड़ाई के बाद जब उनको हमारा देश छोड़कर जाना पड़ा तब भी वो अपनी हरकतों से बाज नहीं आये। हिन्दुस्तान के दो टुकड़े (हिन्दुस्तान और पाकिस्तान) बनाकर हिन्दू- मुश्लिमों में हमेशा के लिये नफरत का बीज बो गये। उस खूनी संघर्ष में लाखों लोगों को अपनी आहुति देनी पड़ी। देश दो हो गये वक्त भी गुजर गया। पर अभी तक जंग जारी है कभी आतंक वाद से तो कभी आमने-सामने से, पता नहीं कब तक यह नफरत भरे संघर्ष का दौर जारी रहेगा यह तो राम जानें। आजादी के बाद राजनीति का जो दौर चला उसने भी लगातार देश वासियों के अमन-चैन पर कुठाराघात ही किया। इन 77 सालों में हर गाँव, हर कस्बे हर गली में लोग सरकारों के आश्वासनों, कोरी घोषणाओं पर टकटकी लगाये आज भी बिजली, पानी, स्वास्थ, सड़क, स्कूल, अध्यापक, किताबें, महगाई, रोजगार, आदि मूलभूत समस्याओं के लिये ही जूझते हुये दिखाई देते हैं।poetry
दूर-दराज के गांवों में जब जाने का अवसर मिला तो-गाँवों के बुर्जुगों ने जो हकीकत जो सच्चाई बयां की । अपनी [poetry] कविता की चन्द पंक्तियों द्वारा आपको भी उससे रूबरू कराता हूँ – शीर्षक हैpoetry
“काश अपने देश में अपनी भी कोई कीमत होती”poetry

बुर्जुगों से जो सुनी हकीकत, तुम तक पहुँचाता हूँ।
कुछ वर्षों पहले और आज का जीवन, तुम्हें दिखाता हूँ।।
याद करो वो दिन, जब देश था गुलाम ।
अंग्रेजी हुकुमत को करते थे सब सलाम।।
जो कुछ भी वो कह देते थे, पड़ता था मानना ।
आफत तो तब आती थी जब होता था सामना ।।
जैसे-तैसे गुजरे दिन, रातें कटी तारे गिन। फिर ।
समय चक्र कुछ ऐसा आया, देश ने कुछ वीरों को पाया ।।
ऐसी आँधी चली देश में, अंग्रेजों का हुआ सफाया ।
आजादी की लहर उठी, खुशियों का रंग जमाके ।।
धूम मच गई देश में सारे, आजादी को पाके ।
अब हर दिन होली के जैसा, हर रात दिवाली सजती थी।।
अमन-चैन ये देख हमारा, सारी दुनियाँ जलती थी । ।
यूँ खुशहाल हो गया, भारत सारा।
जनगनमन बना, राष्ट्रीय गीत हमारा ।।
भारत के लोगों ने मिलकर बनाया अपना शासन ।
इसी आस में बैठे थे हम, सबको बराबर मिलेगा रासन ।। पर,
अपने तक ही सीमित रह गये, शासन के ये लोग।
इनके किये अन्याय की सजा रहे हम भोग ।।
अपने लिये तो महल बनाये, तोड़ हमारी झोपड़ी।
तारीफ के काबिल है सचमुच, इनकी ऊँची खोपड़ी ।।
कहने को आजाद हुये पर, हम हैं अभी गुलाम ।
हुआ हमारे साथ में जो कुछ, उसका करें बखान ।।
पानी की नदियाँ बहती पर, पानी को गये तरस ।
बिजली की आस लगाये, बीते इतने बरस ।|
कीचड़ भरे हुये रस्तों में, फिसल रहे हैं पाँव |
जैसे के तैसे रहे ये अपने देश के गाँव ।।
दवा इलाज के बिना यहाँ पर मरते कितने रोगी ||
आगे-आगे देखिये जाने, कैसी हालत होगी ।|
स्कूलों की देखके हालत, आया हमको रोना ।
सोच रहे हैं बैठे-बैठे, आगे क्या है होना।।
कहने को डिग्री भी बनाई, पर काम न अपने आई।
बेकारी के साथ-साथ ही, बढ़ती रही मंहगाई ।।
राजनीति में भ्रष्टाचार के, फैले इतने पाँव ।
अपने स्वार्थ के खातिर इनने, लड़ा दिये हैं गाँव ।।
जहाँ प्रेम की गंगा थी, नफरत अब है वहाँ भरी।
भोली-भाली जनता है अब, बस दहशत से डरी-डरी।।
दुखी है जनता सारी, दुखी हैं सब नर-नारी।
अब तक गाँवों की ना देखी, किसी ने भी लाचारी ।।
जगह-जगह पर हुआ घुटाला, फैला भ्रष्टाचार है।
अपना कर्तव्य नहीं निभातीं, चाहे जो सरकार है।।
ना मांगें हम सोना-चाँदी, नहीं चाहिए हीरे-मोती।
काश अपने देश में, अपनी भी कोई कीमत होती।।
काश अपने देश में, अपनी भी कोई कीमत होती।।
विकास की किरणों की आस लगाये – लगाये गाँव के गाँव खाली हो चुके हैं एक तरफ गाँव खाली हुये हैं तो, दूसरी ओर शहरों की भीड़ भी अनियंत्रित होते जा रही है। 80 प्रतिशत poetry
ग्रामीण आबादी वाला देश आज 80 प्रतिशत शहरी आबादी वाला देश बन गया है। पलायन किये गाँव में बन्दरों, सुअरों व अनेक जंगली जानवरों का उत्पाती रैन बसेरा बन गया है। इतनी सुन्दर-सुन्दर जगहों का नास हो चुका है जहाँ पर्यटन की अपार संभावनायें थी। अगर सरकारों ने समय पर ध्यान दिया होता तो शायद आज हमारे देश की तस्वीर दूसरी होती। कई तरह के रोजगार की उमीदें बलवती होती। पर किससे कहें – क्या कहें कौन है सुनने वाला। poetry
एक सूत्र में बंधे गाँव का हो गया आज उजाड़ ।
हवा बांवरी तरस रही है, रो रहे गंगा गाड।।
देश की जनता पर भारी है, ये कुर्सी का खेल।
इस कुर्सी के चक्कर में कई, हुनर हो रहे फेल।।
हो रही खींचा-तान पड़ा रही, ये आपस में फूट।
बिराजमान जो होवे इसमें बोले कई है झूठ ।। poetry
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