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Krishna kahani मीरा बाई – एक गोपी का प्रेम समर्पण True love

Krishna kahani:आज हम एक ऐसी ही संत की कथा में प्रवेश करेंगे – जिन्होंने अपने जीवन को कृष्ण-प्रेम में इस प्रकार समर्पित किया, जैसे एक गोपी अपने आराध्य के सम्मुख स्वयं को भुला देती है।

स्थान – गोकुल / नंदगाँव/Krishna Kahani

हमारी कथा गोकुल से आरंभ होती है, जहाँ नंदगाँव के अविचल गोप के पुत्र “सुंदर” का गोना (सगाई के पश्चात विदाईपूर्वक विवाह संस्कार) ब्रज की ही एक कन्या “माधवी” से हो रहा है।

माधवी के पिता का निधन उसके केवल तीन वर्ष की आयु में हो गया था। उनके जीवनकाल में ही उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह सुंदर से निश्चित कर दिया था। माधवी की माँ ने बड़ी कठिनाइयों में, आर्थिक संघर्षों से जूझते हुए, उसे पाला-पोसा है। अब दोनों किशोरवय हो गए हैं, और विवाह का समय आ गया है।

यह समय वही है, जब श्रीकृष्ण का इस पुण्य ब्रजभूमि पर अवतरण हो चुका है। पहले उन्होंने गोकुल में लीलाएं कीं, और फिर ढाई वर्ष की आयु में नंदबाबा उन्हें लेकर वृंदावन आ गए। वहाँ भी उनकी बाल-लीलाओं की ख्याति घर-घर में फैल चुकी थी।

माधवी की माँ (ममता भरे स्वर में):
बेटी, आज तू अपने ससुराल जा रही है। मैंने तुझे सब समझा दिया है — ससुराल के रीति-रिवाज़, सम्मान और व्यवहार। तेरा ससुराल बहुत ही अच्छा है; वहाँ तुझे बहुत स्नेह मिलेगा।
पर एक बात और…
जिस नंदबाबा और यशोदा माँ के यहाँ तू जा रही है, वहाँ एक अद्भुत बालक है – जिसे सब जादूगर कहते हैं। कोई भी उसे एक बार देख लेता है, तो फिर उसी का होकर रह जाता है। उसकी बाँसुरी की धुन सुनते ही लोग अपने होश-हवास खो बैठते हैं। मैं कहती हूँ बेटी, तू उससे आँख मिलाने का प्रयास मत करना।(Krishna kahani)

माधवी (हँसते हुए):
माँ! आप भी कैसी बातें करती हैं। भला एक छोटा-सा बच्चा किसी का क्या कर सकता है?

माँ (गंभीर स्वर में):
बेटी, वो साधारण बालक नहीं है – वह मोर मुकुटधारी, माखनचोर, गोपियों का चितचोर, वही श्रीकृष्ण है।
उसका रूप ऐसा है कि देखने मात्र से मन मोहित हो जाता है। रंग मेघश्याम, आँखे कमल समान, बाँसुरी वादन में पारंगत। गोकुल की स्त्रियाँ उसे देखकर अपने बाल-बच्चों तक को भूल जाती हैं।(Krishna Kahani)

माधवी:
तो फिर माँ, मैं तो उसे देखूँगी ही नहीं। मैं तो घूँघट में रहूँगी – ना वो मुझे देख पाएगा, ना मैं उसे।

माँ:
ठीक है बेटी। मैं तेरी साड़ी में एक गाँठ बाँध देती हूँ। जब-जब तू यह साड़ी विशेष पर्वों पर पहनेगी, यह गाँठ तुझे मेरी बातों की याद दिलाएगी।
और ध्यान रखना – उसकी दृष्टि भी तुझ पर न पड़े। नहीं तो तू भी उसी की हो जाएगी… जैसी और गोपियाँ हो गईं हैं।

(दृश्य परिवर्तन – संध्या समय)
स्थान – नंदगाँव

सुंदर अपनी नववधू माधवी को विदा कराकर नंदगाँव ले आया है। संध्या का समय है। श्रीकृष्ण अपने भ्राता बलराम और सखाओं के साथ गइयां चराकर लौट रहे हैं। गाँव के लोग पुष्पों से मार्ग सजा रहे हैं।(Krishna kahani)

सुंदर (उत्साहित होकर):
रथ रोको! मेरा सखा, मेरा प्राण – मेरा कन्हैया आ रहा है।

कृष्ण (सुंदर को देखकर दौड़ते हैं):
अरे सुंदर! कहाँ था तू इतने दिन? गाय चराने भी नहीं आया।

सुंदर:
गोना हो गया कान्हा! अपनी दुल्हन को लिवा लाने गया था।

कृष्ण (हँसते हुए):
अरे, पहले बताया क्यों नहीं? हम भी चलते तेरे साथ। अच्छा… अब हमें अपनी भाभी से तो मिलवा दे।

सुंदर (हँसते हुए):
देख, अंदर बैठी है। जा मिल ले।

कृष्ण (उत्साह से):
भाभी! मेरा नाम कन्हैया है। कोई मुझे लाला कहता है, कोई माखनचोर, कोई नंदगोपाल – जिसे जो नाम प्यारा लगे, वही मुझे देता है। मुझे कोई आपत्ति नहीं – क्योंकि ये सब नाम प्रेम से जुड़े हैं।
पर भाभी, आप तो कुछ बोलती ही नहीं… क्या गूंगी हैं?(Krishna kahani)

(माधवी मौन है – उसने घूँघट नहीं उठाया)

सुंदर:
अरे माधवी, कान्हा से कौन शरमाता है? ये तो छोटा है, तेरे देवर जैसा।

कृष्ण:
भाभी, बिना तुम्हारा मुख देखे मैं नहीं जाऊँगा। चिंता मत करो, मैं तुम्हें परेशान नहीं करूँगा।

(माधवी फिर भी चुप है, और घूँघट नहीं उठाती)

कृष्ण (दुखी स्वर में):
ठीक है भाभी। बार-बार कहने पर भी तूने मुझे मुख नहीं दिखाया – तो अब मैं भी प्रण करता हूँ, कि तू भी अब जीवन भर मेरे दर्शन को तरसेगी।(Krishna kahani)

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