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मेरो प्यारो उत्तराखंड – संस्कृति, सम्मान और सशक्तिकरण!

“मेरो प्यारो उत्तराखंड” कार्यक्रम में महिलाओं को सम्मानित किया गया. दीया NGO और इंडियन आयल का अभिनव प्रयास.

30 मार्च 2025 को उत्तराखंड की कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से “मेरो प्यारो उत्तराखंड” कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाली महिलाओं को सम्मानित किया गया।

संस्कृति विभाग के ऑडिटोरियम में आयोजित इस कार्यक्रम में कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी जी के साथ बॉलीवुड ऐक्टर देवा धामी ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की और समाज सेवा, कला, व संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाली महिलाओं को सम्मानित किया। मंत्री गणेश जोशी जी कहा कि भारतीय कला और संस्कृति हमारी अस्मिता और पहचान का अहम हिस्सा हैं, और इसे सहेजने में संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है।

कार्यक्रम में छोलिया नृत्य ब्रांड एंबेसडर देवा धामी, यशिका बिष्ट, अजय शंकर, अमित कुमार झा, सुरेंद्र यादव समेत कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। मंत्री जोशी ने संस्था द्वारा उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के प्रयासों की सराहना की और भविष्य में भी ऐसे प्रयासों को समर्थन देने की बात कही।

दीया: उत्तराखंड की संस्कृति का उजियारा

दीया संस्था, जो 25 अगस्त 2009 को स्थापित हुई, भारतीय कला और संस्कृति के संरक्षण के लिए समर्पित है। इसकी पहली पहल उत्तराखंड के पारंपरिक छोलिया नृत्य को पुनर्जीवित करना था, जिसे विलुप्ति से बचाने के लिए उत्तराखंड कला केंद्र की स्थापना की गई।

संस्था ने युवाओं को प्रशिक्षित करने, जागरूकता बढ़ाने, और डॉक्यूमेंट्री फिल्मों के माध्यम से उत्तराखंड की अन्य लोककलाओं को भी बढ़ावा दिया। 2016 में फीचर फिल्म “छोल्यार” के निर्माण से छोलिया नृत्य को नई पहचान मिली, और इंडियन आइडल विजेता पवनदीप राजन को इसी मंच से पहला बड़ा अवसर मिला।

2017 में, दीया ने दिल्ली में व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया, जहां फ्री कंप्यूटर शिक्षा, मेकअप, फोटोग्राफी, वीडियो एडिटिंग और इंग्लिश स्पीकिंग जैसे कोर्स कराए जाने लगे। इसके अलावा, आर्टिस्ट रिलीफ फंड के जरिए जरूरतमंद कलाकारों को आर्थिक सहायता दी जाती है।

आज, दीया फिल्म प्रोडक्शन हाउस, थिएटर ग्रुप, म्यूजिक एंड डांस ग्रुप, योगा एंड फिटनेस सेंटर सहित कई सामाजिक परियोजनाओं का संचालन कर रही है। यह संस्था सिर्फ *संस्कृति का संरक्षण ही नहीं, बल्कि हजारों युवाओं और कलाकारों के लिए आत्मनिर्भरता का मार्ग भी प्रशस्त कर रही है।

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