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उत्तराखंड की बेटियां: जिन्होंने रचा इतिहास और बनाई नई पहचान

महिला सशक्तिकरण सिर्फ शब्दों का खेल नहीं, बल्कि समाज में बदलाव लाने की ताकत है। शिक्षा और आत्मनिर्भरता से महिलाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए रोशनी की किरण बन रही हैं। 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हम उन साहसी बेटियों की बात कर रहे हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत और हौसले से इतिहास रच दिया। उत्तराखंड की ये बेटियां आज पूरे देश के लिए प्रेरणा बनी हुई हैं।

IAS राधा रतुरी: प्रशासन में महिलाओं की सशक्त आवाज

राधा रतुरी का सफर साहस और कड़ी मेहनत का जीता-जागता उदाहरण है। वह कॉलेज के दिनों में पत्रकार बनना चाहती थीं और कई मीडिया कंपनियों में काम भी किया, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। पिता की सलाह मानकर उन्होंने UPSC की परीक्षा पास की और आज उत्तराखंड की मुख्य सचिव (Chief Secretary) के पद पर कार्यरत हैं। अपने प्रशासनिक कार्यों से उन्होंने महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं।

बचेंद्री पाल: पर्वतों की ऊंचाईयों को छूने वाली पहली भारतीय महिला
उत्तराखंड के एक छोटे से गांव में जन्मी बचेंद्री पाल को बचपन से ही पहाड़ों से प्यार था। परिवार और समाज के विरोध के बावजूद उन्होंने पर्वतारोहण को अपना करियर चुना। 1984 में एक खतरनाक हिमस्खलन के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली भारत की पहली महिला बनीं। उनके अदम्य साहस के लिए उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया।

उत्तराखंड की महिला रामलीला: संस्कृति और सशक्तिकरण का संगम

उत्तराखंड में महिला रामलीला की परंपरा एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। आमतौर पर पुरुषों द्वारा निभाए जाने वाले इन पात्रों को जब महिलाओं ने मंच पर जीवंत किया, तो यह महिला सशक्तिकरण का अनूठा उदाहरण बना। सीता-राम विवाह से लेकर रावण वध तक, इस सांस्कृतिक पहल ने महिलाओं के सम्मान और शक्ति का संदेश दिया है।

गीता उनियाल: पहाड़ी संगीत को पहचान दिलाने वाली आवाज

उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोकगायिका गीता उनियाल ने अपनी कला के माध्यम से पहाड़ी संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उनके गाए लोकगीत देश-विदेश में बेहद लोकप्रिय हुए। उन्होंने कई एलबम में काम किया और अपनी आवाज से पहाड़ों की मधुरता को संगीत में पिरोया। 2020 में उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी आवाज आज भी लोगों के दिलों में गूंजती है।

कमला पंत: सामाजिक न्याय और संघर्ष की प्रतीक

उत्तराखंड के चमोली जिले में जन्मी कमला पंत बचपन से ही सामाजिक कार्यों में रुचि रखती थीं। कॉलेज के दिनों में ही उन्होंने विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया और 1984 में ‘नशा नहीं, रोजगार दो’ आंदोलन से अपनी पहचान बनाई। बाद में उन्होंने महिला तस्करी के खिलाफ आवाज बुलंद की और समाज में एक क्रांतिकारी बदलाव लाने का काम किया।

निष्कर्ष:
उत्तराखंड की ये बेटियां केवल अपने लिए नहीं, बल्कि हर उस लड़की के लिए मिसाल हैं जो अपने सपनों को साकार करना चाहती है। महिला दिवस के अवसर पर हम इन साहसी महिलाओं को सलाम करते हैं, जिन्होंने ना सिर्फ अपनी पहचान बनाई, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मजबूत नींव रखी।

Story by-Megha Bhardwaj

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