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क्या आप जानते हैं उत्तराखंड की छुपी हुई मिठास: वो पारंपरिक मिठाइयाँ जो अब भी हैं अनजानी

उत्तराखंड: उत्तराखंड अपनी सुंदर वादियों, आध्यात्मिक स्थलों और समृद्ध लोकसंस्कृति के लिए जाना जाता है, लेकिन यहां की पारंपरिक मिठाइयाँ आज भी देश-दुनिया की नजरों से कहीं छिपी हुई हैं। जहां एक ओर बाल मिठाई और सिंगौड़ी जैसी मिठाइयाँ कुछ हद तक प्रसिद्धि पा चुकी हैं, वहीं कई ऐसी मीठी परंपराएं हैं जो अब भी लोगों की जानकारी से दूर हैं।

    यह एक पारंपरिक मिठाई है जिसे पहाड़ों में त्योहारों पर खास तौर पर बनाया जाता है। चावल और आलू से बनी यह खीर स्वाद में अलग होती है और इसमें दूध, गुड़ या शक्कर का इस्तेमाल होता है। इसकी खुशबू और स्वाद दोनों ही पहाड़ी संस्कृति की मिठास को बयां करते हैं।

      जंगोरा, जो कि एक प्रकार का मोटा अनाज (बर्णयार्ड मिलेट) है, उससे बनने वाली खीर पौष्टिकता से भरपूर होती है। ये मिठाई खासतौर पर कुमाऊं क्षेत्र में बनाई जाती है और धीरे-धीरे लोग इसके स्वाद को पहचानने लगे हैं। दूध, घी और गुड़ मिलाकर इसे तैयार किया जाता है।

        गुड़ और चावल के आटे से बनी यह मिठाई विवाह जैसे मांगलिक अवसरों पर बनाई जाती है। अरसे की खास बात इसका लंबे समय तक खराब न होना और इसका कुरकुरापन है। इसे गढ़वाल क्षेत्र में विशेष रूप से पसंद किया जाता है।

          पुआ एक पारंपरिक मिठाई है जिसे खासतौर पर त्योहारी अवसरों पर बनाया जाता है। इसे गेहूं के आटे, गुड़ और घी से तैयार किया जाता है। इसकी खासियत इसकी नरमी और मिठास में छिपी होती है जो हर उम्र के लोगों को पसंद आती है।

            यह एक देसी मिठाई है जो उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में बनाई जाती है। आटे और गुड़ को मिलाकर, लोई बनाकर सेंका जाता है। यह मिठाई खासकर ठंड के मौसम में बनाई जाती है और इसे खाने से शरीर को ऊर्जा भी मिलती है।

              उत्तराखंड के कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में रेवड़ी और तिलपट्टी के देसी संस्करण बनाए जाते हैं। तिल, गुड़ और स्थानीय घी से बनने वाली ये मिठाइयाँ सर्दियों में शरीर को गर्म रखने के लिए खाई जाती हैं।

              संस्कृति से जुड़ी मिठास को पहचान दिलाने की ज़रूरत

              उत्तराखंड की ये पारंपरिक मिठाइयाँ सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि पहाड़ी जीवनशैली और संस्कृति की मिठास भी समेटे हुए हैं। बदलते वक्त और शहरीकरण की रफ्तार में ये मिठाइयाँ कहीं खोती जा रही हैं। अब वक्त आ गया है कि इन स्वादों को मुख्यधारा में लाया जाए, ताकि अगली पीढ़ी भी इस अद्भुत सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ सके।

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